सुरक्षा बलों को रमजान के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कोई अभियान न चलाने के निर्देश देकर केंद्र सरकार ने एक तरह से मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की संघर्ष विराम की मांग को ही स्वीकार करने का काम किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय भले ही संघर्ष विराम शब्द के उल्लेख से बचा हो, लेकिन उसके फैसले को इसी तरह परिभाषित किया जाएगा। सुरक्षा बलों को संयम बरतने का निर्देश प्रधानमंत्री की जम्मू-कश्मीर की यात्रा के दो दिन पहले दिया गया, लिहाजा उसके कुछ गहरे निहितार्थ भी हो सकते हैं, किंतु इसमें दोराय नहीं कि यह एक जोखिम भरा फैसला है। इसकी पुष्टि गृह मंत्रालय के फैसले के बाद कश्मीर में सेना की एक टुकड़ी पर आतंकियों के हमले से होती है। चूंकि मोदी सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि जब वाजपेयी सरकार के समय रमजान के महीने में सुरक्षा बलों को इसी तरह आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाने से रोका गया था, तो उससे कुछ हासिल नहीं हुआ था, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि उसने कुछ सोच-समझकर ही यह फैसला लिया होगा। जो भी हो, केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कश्मीर में सक्रिय आतंकी व उपद्रवी गुट उसके फैसले का लाभ उठाकर खुद की ताकत बढ़ाने न पाएं। नि:संदेह इस फैसले से ऐसा कोई संदेश भी नहीं उभरना चाहिए कि भारत के पास कश्मीर मसले के समाधान की कोई ठोस नीति नहीं है या फिर उसे उन्हीं उपायों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जो पहले भी आजमाए जा चुके हैं। 

चूंकि गृह मंत्रालय के फैसले का स्वागत जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ-साथ वहां के विपक्षी दलों ने भी किया है, इसलिए उन पर भी यह देखने की जिम्मेदारी है कि रमजान के दौरान कम से कम पत्थरबाज तो अपनी हरकतों से बाज आएं ही। सेना व सुरक्षा बलों के अभियानों के दौरान पत्थरबाज जैसा उत्पात मचाते हैं, उसे देखते हुए उन्हें आतंकियों के समर्थकों के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता। मुश्किल यह है कि सुरक्षा बलों को उपदेश देने वाले पत्थरबाजों को हिदायत देने में संकोच बरतते हैं। केंद्र सरकार को इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए कि यदि उसकी नेक मंशा के अनुकूल परिणाम सामने नहीं आते तो उसका अगला कदम क्या होगा? यह तैयारी इसलिए रखनी होगी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष वार्ताकार की नियुक्ति करने और पत्थरबाजों को माफी देने के फैसले के कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं। नि:संदेह इसका एक बड़ा कारण यह है कि कश्मीर में अलगाववादी एवं पाकिस्तान-परस्त तत्वों पर कहीं कोई लगाम नहीं लग सकी है। यह ठीक है कि रमजान के दौरान आतंक विरोधी अभियान के स्थगन के बाद भी सुरक्षा बल आतंकी हमलों की स्थिति में आतंकियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए स्वतंत्र होंगे, लेकिन उन्हें ऐसा करने के साथ ही सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए भी अतिरिक्त चौकसी बरतनी होगी। सीमा पार से पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकियों की घुसपैठ बढ़ने का अंदेशा इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान यह बिलकुल भी नहीं चाहेगा कि भारत सरकार की कश्मीर के हालात सुधारने वाली कोई पहल कामयाब हो।