ट्वीट में कहा गया कि गौतमबुद्ध नगर की क्राइम ब्रांच टीम को हर महीने साढ़े तीन लाख रुपये की रेग्युलर रिश्वत आती है, जिसका बंटवारा सिपाही से लेकर पुलिस अधीक्षक स्तर के अफसरों के बीच होता है। यह ट्वीट वायरल हो गया तो जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने क्राइम ब्रांच के दो विंग्स सीआईयू और स्वैट को भंग करते हुए सारे स्टाफ को लाइन हाजिर कर दिया, साथ ही तीन सिपाहियों को सस्पेंड भी किया। मामले की जांच अब एसपी सिटी को सौंप दी गई है, लेकिन इसपर सवाल उठ रहा है कि जो पद खुद रिश्वत वाली ट्वीट के दायरे में है, उसी पर आसीन व्यक्ति मामले की जांच कैसे कर सकता है?
ध्यान रहे, उत्तर प्रदेश में आय-व्यय के मामले में गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद जिले लंबे अर्से से टॉप पर माने जाते रहे हैं। दोनों जिलों में भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आते ही रहते हैं। आईएएस नीरा यादव और पिछली दो सरकारों के चहेते यादव सिंह के किस्से पूरी दुनिया जानती है। दोनों जिलों की पुलिस का दामन भी अक्सर दागदार होता रहा है। नेताओं में भी इन जिलों को लेकर तनातनी बनी रहती है क्योंकि इन्हें राज्य में राजनीतिक चंदे का गढ़ भी माना जाता है। ऐसी कई वजहें हैं, जिनके चलते इन दोनों जिलों में पुलिस समेत किसी भी महकमे की बदनामी किसी न किसी रूप में लखनऊ की सत्ता पर काबिज नेताओं को भी अपनी लपेटे में ले लेती है। इसलिए अच्छा होगा कि योगी सरकार इस ट्वीट प्रकरण को सिर्फ एक स्थानीय मामले की तरह न ले। इसकी जांच ज्यादा ऊंचे स्तर पर कराई जानी चाहिए और पुलिसिया भ्रष्टाचार से जुड़े सारे तथ्यों को सामने लाकर इसकी कमर तोड़ने के सारे संभव उपाय किए जाने चाहिए।