By: D.K Chaudhary
सघन तलाशियां बहुत सी जगहों पर होती हैं। हवाई अड्डों पर, सैनिक ठिकानों पर, कई सरकारी इमारतों पर, संसद और विधानसभाओं के प्रवेश द्वार पर। सिर से पैर तक शरीर के हर हिस्से की सावधानी से जांच की जाती है, ताकि कोई हथियार अंदर न चला जाए, कोई जासूसी उपकरण न पहुंचा दिया जाए, सबसे बड़ी बात यह है कि कहीं कोई आतंकवादी घुसपैठ न कर जाए। लेकिन अब इन सब तलाशियों की सख्ती फीकी लगने लगी है। सबसे सख्त तलाशी के मामले में ‘नेशनल एलिजिबिलिटी ऐंड एंट्रेन्स टेस्ट’ यानी नीट की प्रवेश परीक्षा अब सबसे आगे हो गई है। यानी वे बच्चे, जो भविष्य में डॉक्टर बनना चाहते हैं, उन्हें तलाशी की जितनी कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है, उसके सामने उनकी प्रवेश परीक्षा की कठिनाई कुछ भी नहीं है। प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाले बोर्ड सीबीएसई को हर उस चीज में खतरा दिख रहा है, जो हमारी या हमारे बच्चों की जिंदगी का एक नियमित हिस्सा है। उसे कलाइयों में बंधा सूत का कलावा मंजूर नहीं। लड़कियां कंगन और बाली पहनकर परीक्षा देने नहीं जा सकतीं। बुर्का तो छोड़िए, उन्हें दुपट्टा ओढ़ने तक की इजाजत नहीं। कमीज कॉलर वाली नहीं होनी चाहिए और न ही पूरी बाजू वाली। बेल्ट और जूतों तक की इजाजत नहीं है। इतने सख्त ड्रेस कोड तो अब देश के धर्मस्थलों पर भी नहीं होते। लेकिन क्या करें, मजबूरी है, जिन्हें डॉक्टर बनना है, उन्हें यह सब करना ही होगा, भले ही यह सब कितना भी मूखर्तापूर्ण क्यों न हो।
यह ठीक है कि नकल की समस्या बहुत बड़ी है। ऊपर से परचे लीक हो जाने का नया चलन परेशान करने वाला है। यह भी ठीक है कि नई तकनीक ने परेशानी को बढ़ा दिया है। कुछ समय पहले जब ब्लू टूथ के जरिए नकल का मामला उजागर हुआ, तो उसके बाद से ही सीबीएसई ने यह तरीका निकाला है। तकनीक का मुकाबला वह हाथों से तलाशी के उस आदिम तरीके से करना चाहता है, जो अपमानजनक तो है ही, आपत्तिजनक भी है। परीक्षा के लिए बहुत ही सख्त और सामाजिक मार्यादाओं का ख्याल न रखने वाला ड्रेस कोड शायद हमें गुरुकुल से भी बहुत पहले के युग में ले जाएगा। और यह भी तय है कि इस तरह का ड्रेस कोड बहुत दिन तक चलने वाला नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सिख छात्रों के मामले में यह इजाजत दे दी है कि वे हाथों में कड़ा पहनकर और कृपाण धारण करके परीक्षा देने जा सकते हैं। इसके बाद दूसरे धर्मावलंबी भी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और अभी जो कवायद चल रही है, उसका अगली बार से कोई अर्थ नहीं रहेगा। छात्र तो मेहनत और परीक्षा की तैयारी के बल पर ही पास या फेल होंगे, लेकिन सीबीएसई समाज की संवेदनशीलता को समझने के मामले में फेल जरूर हो गया है।
परीक्षाओं में नकल और प्रश्नपत्र लीक होने का कदाचार किसी न किसी तरह से तब तक चलता रहेगा, जब तक कि हम उस प्रक्रिया को खत्म नहीं करते, जिसमें कुछ घंटे की एक परीक्षा से बच्चों के पूरे भविष्य का फैसला हो जाता है। एक दूसरा तरीका है, जो आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में अपनाया जाता है। वहां कंप्यूटरों पर ऑनलाइन परीक्षा होती है, जिसमें परचे के लीक होने या नकल की संभावना ही नहीं रहती। सीबीएसई अगर परीक्षा प्रणाली नहीं बदल सकता, तो तकनीक का मुकाबला तकनीक से करने का ऐसा तरीका तो अपना ही सकता है।