By: D.K Chaudhary
अदालत के आदेश पर कई दिनों बाद मामला दर्ज हुआ तो केस वापस लेने का दबाव शुरू हो गया। पीड़िता के परिजनों को इतना परेशान किया गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की। इसके बाद लड़की के पिता को कुछेक आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया, कस्टडी में ही उनकी तबीयत खराब हुई और मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ है कि उनकी मौत पिटाई से हुई। फिर यह भी पता चला कि जिस जेल में पीड़िता के पिता बंद थे, उसमें कई चीजों की सप्लाई का जिम्मा विधायक के एक रिश्तेदार का था। पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस प्रशासन विधायक को बचा रहा है, जबकि आरोपी विधायक पीड़िता के परिवार और अपने परिवार के बीच पुरानी रंजिश का हवाला देते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बता रहे हैं। मामले में 6 पुलिसकर्मियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई और उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इससे पीड़ित पक्ष के आरोप को मजबूती मिलती है। जो भी हो, मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए और इसका हर पहलू सामने आना चाहिए।
भले ही यह यूपी का मामला है, पर पूरे देश की नजरें इस पर टिकी हैं क्योंकि हमारे सिस्टम के लिए यह एक टेस्ट केस है। सबको पता है कि जिन भी मामलों में आरोपी का संबंध सत्तापक्ष से होता है, उनमें जांच भूलभुलैया में भटककर रह जाती है। अब यह राज्य सरकार पर है कि वह इस धारणा को तोड़ पाती है या नहीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर यूपी को अपराधमुक्त बनाना चाहते हैं तो इस मामले की जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें।