आसियान के साथ (Editorial page) 27th Jan 2018

By: D.K Chaudhary

गणतंत्र दिवस के मेहमान के तौर पर आसियान के सदस्य-देशों के नेताओं को आमंत्रित करना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि इसके पीछे भारत का एक सुचिंतित उद्देश्य भी काम रहा था और वह था दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी पैठ बढ़ाना तथा इस क्षेत्र में चीन के दबदबे के बरक्स अपनी रणनीति को आगे बढ़ाना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसियान देशों के नेताओं के साथ जो द्विपक्षीय वार्ताएं कीं उनमें भी और भारत-आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन में भी यों तो ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा-राहत जैसे मुद्दे भी उठे, पर जो मुद््दा सबसे ज्यादा छाया रहा वह था समुद्री सुरक्षा सहयोग का। यों किसी ने भी चीन का नाम नहीं लिया, पर दक्षिण चीन सागर विवाद की पृष्ठभूमि में समुद्री सुरक्षा सहयोग पर जोर देने से यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि परोक्ष निशाना चीन था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ताओं के बाद कहा कि भारत और आसियान के दस देश समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए सहमत हुए हैं। इसके लिए एक तंत्र बनाया जाएगा। फिर, भारत-आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए भी उन्होंने आसियान देशों के साथ समुद्री क्षेत्र में आपसी सहयोग को बहुत अहम बताया।

दक्षिण चीन सागर की बाबत चीन के एकाधिकारवादी रवैये को आसियान देशों के साथ ही भारत और जापान के अलावा आस्ट्रेलिया, अमेरिका समेत पश्चिमी देश भी समुद्र संबंधी अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों की अवहेलना मानते हैं। इसलिए भारत और आसियान ने समुद्री क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने के साथ ही समुद्र से संबंधित नियम-कायदों का अनुपालन सुनिश्चित करने का आह्वान किया, तो स्वाभाविक ही यह चीन को रास नहीं आ सकता। इस मौके पर जारी हुआ दिल्ली घोषणापत्र भी चीन को नागवार गुजरा होगा जिसमें 1982 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मंजूर किए गए समुद्र संबंधी कानूनों, अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन द्वारा संस्तुत मानकों और व्यवहारों के मुताबिक मतभेदों तथा विवादों के निपटारे की वकालत की गई है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि सब कुछ चीन के खिलाफ हो और सब कुछ भारत के पक्ष में हो। आसियान से चीन का व्यापार भारत की तुलना में बहुत ज्यादा है। चीन के बीआरआई यानी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ को लेकर आसियान के भीतर सकारात्मक रुझान है। जबकि चीन की इस बेहद महत्त्वाकांक्षी कारोबारी योजना पर भारत को ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर’ की वजह से सख्त एतराज है। दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन का झगड़ा खासकर विएतनाम, फिलीपीन्स, ब्रुनेई और मलेशिया के साथ है, और इस मसले पर भी आसियान बंटा हुआ है।

 यह कहना ज्यादा सही होगा कि दक्षिण चीन सागर के विवाद में भी आसियान के सभी सदस्य देश चीन के विरुद्ध मुखर होना नहीं चाहते। लेकिन उनका भारत के साथ मिलकर मुक्त नौवहन का पक्ष लेना या समुद्री आवाजाही के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित नियम-कायदों के अमल की वकालत करना अपने आप में यह बताता है कि वे चीन के दबदबे से आक्रांत हैं और इससे निकलना चाहते हैं। भारत की ऐक्ट ईस्ट नीति के अलावा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग पुख्ता करने की खातिर बना जापान, भारत, आस्ट्रेलिया और अमेरिका का चतुष्टय भी इसमें मददगार साबित हो सकता है। इस सिलसिले में आसियान के नेताओं का दिल्ली आना, भारत-आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन और इस मौके पर जारी हुआ दिल्ली घोषणापत्र एक अहम मुकाम है।

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