By: D.K Chaudhary
इसी सत्र में सरकार ने दो लाख 80 हजार नौकरियों के लिए बजट बनाने की बात बताई थी, मगर ये नौकरियां कहां और किसे मिलीं, सरकार को भी नहीं पता। साल 2017 की शुरुआत ही पांच फीसद से अधिक की बेरोजगारी दर के साथ हुई थी। साल के अंत में, यानी दिसंबर में सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) ने इसे 4.8 फीसद बताकर कुछ राहत तो दी है, मगर नोटबंदी में बेरोजगार हुए लोगों के वापस काम पर लौटने से शहरी बेरोजगारी 5.5 फीसद के बेचैनी भरे आंकड़े पर पहुंच चुकी है। संगठित निजी क्षेत्र में हालात और ज्यादा खराब हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड देश की शीर्ष कंपनियों में नए कर्मचारियों की संख्या साल 2016-17 में घटकर 66,000 तक पहुंच गई, जबकि साल 2015-16 यह 1,23,000 थी। रोजगार के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई को हाल तक सबसे सेफ माना जाता था, मगर वर्ष 2017 में देश भर के 122 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं।
आईआईटी, एनआईटी और आईआईआईटी जैसे प्राइम इंस्टीट्यूट्स में बीते साल 5,915 सीटें खाली ही रहीं। पिछले महीने एसोचैम ने बताया कि बी कैटिगरी के बिजनेस स्कूलों से निकलने वाले 20 फीसद स्टूडेंट्स के पास ही जॉब ऑफर्स हैं। नौकरियों की कमी के पीछे सरकार का तर्क है कि उसने सीधी भर्तियों की जगह ऐसे मौके उपलब्ध कराए हैं, जिनसे रोजगार पैदा होते हैं, जैसे कि स्टार्टअप इंडिया या मुद्रा योजना। हकीकत यह है कि दस हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम स्टार्टअप इंडिया योजना के तहत अब तक मात्र 5 करोड़ 66 लाख रुपये जारी हुए हैं, जबकि मुद्रा योजना में सरकार ने 11.25 फीसदी से 11.75 फीसदी की ब्याज दर रखी है, जो बाजार से कहीं ऊंची है। फिलवक्त देश में 12 करोड़ से भी अधिक युवा रोजगार की लाइन में हैं। इनकी उम्मीद बनाए रखने के लिए सरकार को जल्दी कुछ करना होगा।