भारत में बहुत-से लोगों को लग सकता है कि यह दूर की खबर है, लेकिन सऊदी अरब में 11 शहजादों, चार मंत्रियों और अनेक पूर्व मंत्रियों की गिरफ्तारी ऐसी घटना है, जिससे अपने यहां भी सीख ली जा सकती है। ये कार्रवाई शाही आदेश से भ्रष्टाचार विरोधी समिति के गठन के कुछ ही घंटों के बाद हुई। ये समिति क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की अध्यक्षता में बनी है। 32 वर्षीय क्राउन प्रिंस सलमान ने अपनी छवि एक सुधारक की बनाई है। सामाजिक जीवन में उनकी पहल पर कई उदारवादी फैसले लिए गए हैं। इनमें महिलाओं को ड्राइविंग की मिली छूट भी शामिल है। अब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी है। इसकी शुरुआत उन्होंने बेहद रसूखदार लोगों के खिलाफ कठोर कदम उठाते हुए की। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अक्सर छवि निर्माण में लगे शासक निम्नस्तरीय अधिकारियों या छोटे-मोटे व्यवसायियों पर कार्रवाई करके प्रचार पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्राउन प्रिंस सलमान ने शुरुआत अपने सऊदी राजपरिवार से जुड़े लोगों से की। राजपरिवार के गिरफ्तार हुए सदस्यों में अरबपति शहजादे अलवलीद बिन-तलाल भी हैं।
सऊदी अरब लोकतांत्रिक देश नहीं है। माना जाता है कि लोकतंत्र में उच्च-पदस्थ अधिकारियों की जवाबदेही तय रहती है। वहां पारदर्शिता होती है, इसलिए भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होती है। जबकि राजतंत्र या तानाशाही व्यवस्थाओं में शासक निरंकुश होते हैं, अत: वे मनमर्जी चलाते हैं। लेकिन सऊदी अरब की ताजा मिसाल और चीन के हालिया घटनाक्रम को सामने रखें, तो इस धारणा पर पुनर्विचार की जरूरत पड़ सकती है। पांच साल पहले देश की कमान संभालने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना बहुचर्चित अभियान शुरू किया। उन्होंने बाघ और मक्खियों (यानी उच्च या निम्न पदस्थ भ्रष्टाचारियों) दोनों को ही ना बख्शने का इरादा जताया। आम राय है कि उनका अभियान काफी प्रभावी रहा है। दरअसल, चीन की सत्ता पर उनकी पकड़ मजबूत होने का यह भी एक बड़ा कारण है। ये बात शी के संदर्भ में कही गई और अब क्राउन प्रिंस सलमान के मामले में भी दोहराई जा रही है कि असल में ये नेता अपनी सत्ता मजबूत करने और अपने विरोधियों को निपटाने के मकसद से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चला रहे हैं।
संभव है कि इसमें कुछ सच्चाई हो। ऐसी खबरें आई थीं कि क्राउन प्रिंस की बढ़ती ताकत से सऊदी राजपरिवार में असंतोष है। इसके बावजूद इतनी बड़ी कार्रवाई को महज सत्ता-संघर्ष का परिणाम नहीं माना जा सकता। ऐसे कदम मजबूत इरादे वाले नेता ही उठा पाते हैं। भारत जैसे देशों के लिए इसमें एक सबक छिपा है। अपनी लोकतांत्रिक परंपरा पर गर्व करते हुए भी हमें अक्सर ये अफसोस होता है कि अपने यहां भ्रष्ट नेताओं या कारोबारियों का असल में कुछ नहीं बिगड़ता। कई मामलों में सरकारों की अनिच्छा, तो कुछ मामलों में धीमी न्यायिक प्रक्रिया के कारण ऐसा होता है। इसकी भारी कीमत जनता चुकाती है। क्या यह संभव नहीं है कि लोकतंत्र को कायम रखते हुए भी हम चीन या सऊदी अरब जैसा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान अपने देश में भी चला सकें