By: D.K Chaudhary
पूरी उम्मीद है कि इन दोनों प्रयोगों के फायदे आगे चलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेंगे। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी ऐसी राय जाहिर कर रही हैं। लेकिन अभी तो अपनी पुरानी रफ्तार पकड़ना ही इंडियन इकॉनमी के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। सरकार के पक्ष में सबसे अच्छी बात यह है कि बहुतेरी समस्याओं के बावजूद लोगों का भरोसा मोदी सरकार के प्रति बना हुआ है। अभी हिमाचल प्रदेश और गुजरात में और उसके पहले उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत इसका सबूत है। मोदी सरकार को इस मायने में भाग्यशाली कहा जाएगा कि कार्यकाल का दो तिहाई हिस्सा बीत जाने के बाद भी उसके फैसलों, कार्यों का ठोस विरोध होना तो दूर, कायदे से उसकी समीक्षा भी शुरू नहीं हो पाई है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सत्तापक्ष की ओर से रोज ही कोई न कोई नया मुद्दा खड़ा कर दिया जाता है और विपक्ष प्रतिक्रिया देने में ही उलझा रह जाता है। कमोबेश यही हाल आम जनता का भी है। गोरक्षा और लव जिहाद से लेकर ‘पद्मावती’ तक जारी यह सिलसिला अगर नए साल में भी चलता रहे तो अगले चुनाव तक का वक्त यह सरकार आराम से सीटी बजाते हुए पार कर लेगी। हां, इस साल विपक्ष इस चाल में न उलझे तो बात बदल भी सकती है। कांग्रेस ने गुजरात चुनाव में कुछ नए तेवर जरूर दिखाए हैं, लेकिन इसके पीछे कोई बुद्धि-विवेक है या यह सिर्फ बासी कढ़ी का उबाल है, इसका अंदाजा इस साल ही लग पाएगा। एक बात तो तय है कि कांग्रेस के नए नेतृत्व को संदेह का लाभ नहीं मिलने वाला। उसे कदम-कदम खुद को साबित करते हुए बढ़ना होगा। यानी नए साल में जहां सरकार के सामने अपने इस कार्यकाल की उपलब्धियों से लोगों को कन्विंस करने की चुनौती होगी, वहीं विपक्ष को यह साबित करना होगा कि वह जनता से संवाद बनाकर सरकार को घेरने की काबिलियत रखता है।