मर्ज और दवा (Editorial page) 07th April 2018

By: D.K Chaudhary

विशिष्ट पहचान नंबर यानी आधार की अनिवार्यता का दायरा सरकार लगातार बढ़ाती रही है। इसके पीछे प्रशासनिक कामकाज, योजनाओं और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने से लेकर अपराधों पर काबू पाने और आतंकवाद से कारगर ढंग से निपटने जैसे तमाम तर्क सरकार की तरफ से दिए जाते रहे हैं।

सुनवाई के दौरान केंद्र के महाधिवक्ता ने कहा कि इससे बैंक धोखाधड़ी, धनशोधन, आय कर चोरी आदि पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। इस पर पीठ का कहना था कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों को ही मिले इसमें तो आधार मददगार हो सकता है, पर बैंक धोखाधड़ी कैसे रुक सकती है? बैंक से भारी कर्ज लेकर डकार जाने की घटनाएं अनेक पहचान-दस्तावेजों के कारण नहीं होतीं। बैंक अधिकारी जानते हैं कि वे किसे कर्ज दे रहे हैं। बैंक धोखाधड़ी के अधिकतर मामलों में किसी न किसी अधिकारी की मिलीभगत होती है। इसलिए आधार के बल पर बैंक धोखाधड़ी रोकने की बात खोखली ही जान पड़ती है। सुनवाई के दौरान अदालत ने यह तक टिप्पणी की, कि कल को हो सकता है आप डीएनए टेस्ट के लिए खून का नमूना मांगें। क्या यह निजता के अधिकार का हनन नहीं है? आधार के जरिए आतंकवाद से निपटने के दावे पर भी अदालत ने सवाल उठाए हैं। पीठ ने पूछा, क्या आतंकी सिम के लिए आवेदन करते हैं; वे तो सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करते हैं। क्या कुछ आतंकियों को पकड़ने के लिए सवा सौ करोड़ की आबादी को मोबाइल फोन को आधार से लिंक कराने के लिए कहा जा सकता है!

सरकारी दावों की अतिरंजना का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार आधार को असमानता खत्म करने वाली योजना के तौर पर भी पेश करती रही है। लेकिन आधार शुरू होने के बाद से क्या असमानता रंचमात्र भी कम हुई है? उलटे यह और बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि देश में दो तिहाई संपत्ति पर महज एक फीसद लोगों का कब्जा है। यह पहला मौका नहीं है कि जब आधार को लेकर सरकार को अदालत में खरी-खोटी सुननी पड़ी हो। कल्याणकारी योजनाओं से आगे बढ़ कर आधार की अनिवार्यता का दायरा बढ़ाते जाने पर अदालत ने कई बार नाराजगी जताई थी। पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। निजता को नागरिक का मौलिक अधिकार मानने के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से सरकार के रुख को तगड़ा झटका तो लगा, पर वह अपनी जिद पर कायम रहते हुए हर चीज को आधार से जोड़ने के नए-नए फरमान जारी करती रही है। एक बार फिर अदालत ने सरकार के रुख से प्रथम दृष्टया असहमति जताई है। देखना है कि अदालत में चल रहे मामले की अंतिम परिणति क्या होती है!

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