By: D.K Chaudhary
नोटों की जमाखोरी के पीछे एक बड़ा कारण लोगों में नोटबंदी का बैठा खौफ है। दूसरा बड़ा कारण यह है कि लोग एफआरडीआइ (फाइनेंशियल रेग्युलेटरी एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस) विधेयक को लेकर डरे हुए हैं। लोगों को लग रहा है कि अगर ऐसा कानून बन गया तो बैंकों में उनकी जमा रकम डूब सकती है।
नोटबंदी की मार से लोग अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाए हैं कि एक बार फिर नकदी संकट की खबरों ने नींद उड़ा दी है। देश के ग्यारह राज्यों से खबर है कि लोग एटीएम से खाली हाथ लौट रहे हैं। ज्यादातर बैंकों के एटीएम खाली पड़े हैं। जहां इक्का-दुक्का एटीएम चल भी रहे हैं, वहां लंबी कतारें नोटबंदी के दिनों की याद ताजा करा रही हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चालीस फीसद एटीएम खाली होने की खबरें हैं और हालत यह है कि पिछले एक हफ्ते से किसी भी बैंक में नकदी नहीं आई है। इस तरह अचानक आया संकट सरकार और बैंकिंग प्रणाली दोनों पर सवाल खड़े करता है। क्या सरकार और केंद्रीय बैंक को जरा भी भनक नहीं लगी कि नकदी की कमी होने जा रही है? अगर ऐसा है तो यह हमारी बैंकिंग प्रणाली की दुर्दशा को बताता है। हालांकि सरकार और रिजर्व बैंक ने दावा किया है कि देश में पर्याप्त नकदी है और यह संकट अस्थायी है। पर जिस तरह से सारा संकट आया, उसको देखते हुए यह बात आसानी से गले नहीं उतरती।
मौजूदा नकदी संकट के लिए रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली काफी हद तक जिम्मेदार है। करेंसी चेस्ट में नोटों की सप्लाई घट कर चालीस फीसद रह गई है। इसीलिए करेंसी चेस्ट बैंकों को भी उनकी मांग के अनुरूप पैसा नहीं दे पा रहे। अर्द्धशहरी और ग्रामीण इलाकों में बैंकों को उनकी जरूरत के हिसाब से नकदी नहीं पहुंचाई जा रही। पचास, सौ और दो सौ रुपए मूल्य के नोट पर्याप्त नहीं हैं। जबकि सबसे ज्यादा जरूरत इन छोटे मूल्य के नोटों की पड़ती है। इससे साफ है कि रिजर्व बैंक नकदी सप्लाई नहीं कर पा रहा। इसके पीछे भले तकनीकी या नीतिगत वजहें हों, लेकिन संकट आम जनता को झेलना पड़ रहा है।