देरी के शिकार (Editorial page) 08th April 2018

By: D.K Chaudhary

काले हिरण का शिकार करने के मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान को हुई पांच साल की सजा जितना हैरान नहीं करती, उससे ज्यादा भारतीय न्याय-व्यवस्था के बारे में सोचने को मजबूर करती है।  यह सजा उस 20 साल पुराने मामले में हुई है, जब एक फिल्म की शूटिंग के दौरान सलमान खान अपने सहयोगी कलाकारों सैफ अली खान, नीलम, सोनाली और तब्बू के साथ शिकार पर निकले थे। आरोप है कि इस शिकार के दौरान उन्होंने एक चिंकारा और दो काले हिरणों का शिकार किया। चिंकारा और काले हिरण, दोनों ही दुर्लभ वन्य जीवों की श्रेणी में आते हैं और उनका शिकार करना गैर-कानूनी है।

जाहिर है कि इसे लेकर उनके खिलाफ मुकदमा चलना ही था। लेकिन इसके बाद की जो कहानी है, वह काफी उलझाने वाली है। उनके खिलाफ तीन मामले तो शिकार के बन गए। इसके अलावा एक मामला बना गैर-कानूनी हथियार का। बताया गया कि इस शिकार के लिए जिन बंदूकों का इस्तेमाल किया गया, उनके लाइसेंस की अवधि समाप्त हो चुकी थी। इन चारों मामलों की प्रक्रिया अलग-अलग चली है और कुछ की तो अभी भी चल रही है। बंदूकों वाले मामले में तो बरी हो गए, लेकिन चिंकारा वाले मामले में उन्हें निचली अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई, लेकिन उच्च न्यायालय ने उन्हें इस मामले में आरोप मुक्त कर दिया, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और यह मामला अभी तक खत्म नहीं हुआ है। इसी तरह, एक काले हिरण के मामले में वह बरी हो गए, जबकि दूसरे के शिकार के मामले में अब जाकर जोधपुर की अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई है। जाहिर है कि सलमान खान अब ऊपरी अदालत का दरवाजा खटाखटाएंगे और यह मामला चलता रहेगा।

जहिर है कि एक दिन के शिकार का यह मामला बीस साल तक खिंच गया है और अभी भी इसके जल्द खत्म होने के कोई आसार नहीं हैं। न्याय-व्यवस्था की यह गति परेशान करने वाली है। पिछले बीस साल का यह समय एक अभिनेता के रूप में सलमान खान के शिखर पर पहुंचने का दौर भी है। इसी दौर में तमाम संभावनाओं वाला यह सितारा एक सुपर स्टार में बदल गया और उसने एक के बाद एक हिट फिल्मों की कतार बांध दी। बेशक यह सब सलमान की प्रतिभा और उनकी मेहनत का नतीजा है, लेकिन इस बीच किसी को भी न्याय नहीं मिला, न उन दुर्लभ वन्य जीवों को और न खुद सलमान खान को। उस मौके पर उनके साथ निकले सहयोगी कलाकार भी पिछले बीस साल से मौके-बेमौके अदालतों के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। 

कानून की दुनिया में एक कहावत है कि देर से हुआ न्याय, न्याय नहीं होता। इसलिए इन मामलों में जब भी अंतिम फैसला होगा, शायद वह न्याय का सम्मान हासिल करने का अधिकारी नहीं रह जाएगा। मामले जब लंबे खिंचते हैं, तो अभियुक्तों को मामले को प्रभावित करने के लिए लंबा समय मिल जाता है। इसका फायदा उठाकर कई सुबूतों को मिटा दिया जाता है, गवाहों को खरीद लिया जाता है। अगर हम अपने देश को सचमुच न्याय आधारित समाज बनाना चाहते हैं, तो अदालतों में बरबाद होने वाले समय को प्राथमिकता बनाना होगा। सलमान खान का यह मामला एक और मामला है, जो हमें न्याय प्रक्रिया को तेज और दुरुस्त बनाने की चेतावनी दे रहा है।

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