By: D.K Chaudhary
विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है। इसकी पवित्रता और मर्यादा की रक्षा करना सभी सदस्यों का कर्तव्य है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र हंगामा, विरोध और अप्रिय स्थितियों की भेंट चढ़ गया। अंतिम दिन कुछ राजनेताओं के अमर्यादित आचरण और हंगामे के कारण विधानसभा अखाड़ा सी बन गई, उसका संदेश देश भर में गलत गया है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। विधानसभा अध्यक्ष की यह टिप्पणी इस मामले की गंभीरता को स्पष्ट करती है कि ‘सदन जिस तरह से चल रहा है, उसे देखकर पूरा देश हंस रहा है।’ उन्होंने सदस्यों को साफ चेतावनी दी कि आसन मजबूर नहीं है। उनके आक्रोश और पीड़ा को समझा जा सकता है। दुर्भाग्य से विधानसभा में ऐसी स्थिति पहली बार नहीं बनी है। लगभग हर सत्र भारी हंगामे की भेंट चढ़ता रहता है। चाहे कोई भी दल सत्ता या विपक्ष में हो, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यहां की नियति बन गई है। आम लोगों के मुद्दे पर शायद ही कभी सदन में सार्थक चर्चा हो पाती है। सत्र का बड़ा हिस्सा हंगामे की भेंट चढ़ जाता है और इसी दौरान सरकार अपने प्रस्तावों को ध्वनि मत से पास करा लेती है। चर्चा न हो पाने का सबसे बड़ा नुकसान राज्य की जनता का होता है जो जनप्रतिनिधियों को अपने और जनहित से जुड़ी समस्याओं को विधानसभा में उठाकर उसके समाधान के लिए चुनते हैैं। झारखंड विधानसभा की कार्रवाइयों का इतिहास उठाकर देखें, अधिकतर मामले में आम जनता को कभी भी विधानसभा में हुई चर्चा के आधार पर पक्ष-विपक्ष की दलील को सुनने और समझने का मौका नहीं मिल पाया है। विधानसभा का इस बार का सत्र भी पिछले सत्रों से अलग नहीं था। इस स्थिति को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में जहां दोनों पक्षों में एक-दूसरे के खिलाफ निजी कटुता की भावना बढ़ती जाती है, वहीं सार्थक बहस और सरकार के कामों के बारे में विधानसभा में विस्तृत चर्चा का मौका भी हाथ से निकल जाता है। शुक्रवार को विधानसभा में जैसी अप्रिय स्थिति आई, उसे दोनों पक्षों के बीच बढ़ती कटुता के ज्वलंत उदाहरण के रूप में देखा जाना चाहिए। सिर्फ भाषा ही अमर्यादित नहीं हुई, बल्कि शारीरिक हाव-भाव में जैसी आक्रामकता थी, उसे उचित नहीं कहा जा सकता है। विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है। इसकी पवित्रता और मर्यादा की रक्षा करना सभी सदस्यों का कर्तव्य है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी