जुमलों पर जंग  Editorial page 11th May 2018

By: D.K Chaudhary
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं। गुरुवार को वहां चुनाव प्रचार समाप्त हो गया। वहां का चुनाव प्रचार भी देश के लिए दिलचस्पी का विषय बना हुआ था। इसे एक मेगा टीवी शो की तरह देखा गया। इसमें भरपूर नाटकीयता थी, शब्दों की बाजीगरी थी, जुमलेबाजी थी, नुक्ताचीनी थी, कटाक्ष था और भी बहुत कुछ। नहीं था तो बस मुद्दा। कोई पूछे कि चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। कहने को तो बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस ने अपने-अपने घोषणापत्रों में बड़ी-बड़ी बातें कहीं, दावे किए, पर प्रचार में वे सब सामने नहीं आए। किसी पार्टी के नेता ने जनता को संबोधित करते हुए अपने घोषणापत्र को दोहराने की जरूरत नहीं समझी। जब भी बड़े नेता किसी सभा में खड़े हुए उन्होंने अपने विरोधी की खिंचाई की, उस पर निजी हमले किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि कर्नाटक के नतीजों के बाद कांग्रेस पीपीपी बनकर रह जाएगी। 
पीपीपी का अर्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि पंजाब, पुद्दुचेरी और परिवार। दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधीने कहा कि पीएम मोदी और बीजेपी ने गब्बर सिंह की पूरी टीम कर्नाटक चुनाव में झोंक दी है। रेड्डी ब्रदर्स भी अब चुनाव में उतर गए हैं। ज्यों-ज्यों प्रचार परवान चढ़ता गया, नेताओं की जुबान तल्ख होती गई। कर्नाटक के लिए रोजगार, शहरों का प्रबंधन, किसानों की खुदकुशी जैसे मामले अहम हैं। बीते पांच सालों में राज्य में 3500 किसान खुदकुशी कर चुके हैं, लेकिन किसी भी दल के लिए यह बड़ा सवाल नहीं रहा। बीजेपी चाहती तो राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार को इस पर घेर सकती थी, पर उसने राहुल गांधी पर निशाना साधना ज्यादा जरूरी समझा। शायद इसलिए कि अगर वह मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर फोकस करती तो उसके सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा का ट्रैक रेकॉर्ड भी खंगाला जाता। संभवत: कठुआ और उन्नाव जैसे मामलों की वजह से बीजेपी लॉ ऐंड ऑर्डर पर भी कांग्रेस को घेरने से बचती रही। उसने कांग्रेस पर जुमलों से वार करना ज्यादा उचित समझा। 

दोनों ही पार्टियों को कहीं न कहीं अहसास था कि जनता भी विकास के मुद्दे पर वोट नहीं देने वाली। राज्य के लोगों को प्रभावित करने वाले तत्व कुछ और ही हैं। कुछ शहरी इलाकों को छोड़ दें तो आज भी कर्नाटक के लोग अपने धार्मिक-सामाजिक समीकरणों के आधार पर ही फैसले करते हैं। बाहर से आकर नेतागण कुछ भी कहते रहें, जनता अपने तरीके से निर्णय करती है। शायद इसीलिए कांग्रेसियों और बीजेपी के नेताओं ने वहां के सभी मठों के चक्कर लगाए। लिंगायत फैक्टर वहां के लिए अहम माना जा रहा है। साफ है कि वहां के लोगों की सोच उत्तर भारत से अलग नहीं है। देखना है, वे चुनाव में क्या फैसला सुनाते हैं। 

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