By: D.K Chaudhary
अमेरिका में बसने की अदम्य इच्छा पाले भारतीयों के लिए अप्रिय खबर है कि वहां ग्रीन कार्ड की उम्मीद लगाए बैठे लोगों की सूची इतनी लंबी हो चुकी है कि किसी-किसी को 92 वर्ष तक भी इंतजार करना पड़ सकता है। आंकड़े बता रहे हैं कि वहां विदेशियों के कुल 3,95,025 ग्रीन कार्ड आवेदनों में से 3,06,601 आवेदन अकेले भारतीयों के हैं। यानी अमेरिका में वैध स्थाई निवास पाने के इच्छुक लोगों की कतार में शामिल भीड़ का तीन-चौथाई हिस्सा भारतीयों का है। अमेरिका का मौजूदा कानून किसी एक देश को कुल ग्रीन कार्ड का सात प्रतिशत से ज्यादा देने की इजाजत नहीं देता। स्थाई निवास के इस कोटे से सबसे ज्यादा भारतीय ही प्रभावित हुए हैं, क्योंकि सबसे बड़ी सूची भारत की ही है। दूसरे नंबर पर भारत के बहुत पीछे चीनी नागरिक हैं, जिनकी संख्या महज 67,031 है। अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, फिलीपींस, मेक्सिको और वियतनाम भी लाइन में हैं, लेकिन इनमें से कहीं से भी दस हजार से ज्यादा आवेदन नहीं हैं।
दरअसल यह सब ट्रंप प्रशासन की उन नीतियों का असर है, जिसमें अमेरिका फस्र्ट के आग्रह पर कई ऐसे फैसले लिए गए, जिन्हें वहां के पेशेवर भी आत्मघाती मानते हैं। जल्दबाजी में अपनाई गई इन नीतियों में कई खामियां हैं,जिनका विरोध हो रहा है। भारतीय मूल के अमेरिकी आईटी प्रोफेशनल्स ने पिछले दिनों न्यू जर्सी और पेंसिल्वेनिया में प्रदर्शन कर ग्रीनकार्ड बैकलॉग खत्म करने की मांग की है। प्रति देश कोटा लगाने का यह फैसला अपने आप में अतार्किक है, क्योंकि इससे वे तमाम लोग प्रभावित होने जा रहे हैं, जो पहले से वहां हैं और निकट भविष्य में समय-सीमा प्रभावित होने के कारण उनका एच4 वीजा खत्म हो जाएगा। पेंसिल्वेनिया में तमाम भारतीय बच्चों ने अपनी परेशानी साझा करते हुए ट्रंप प्रशासन को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा बताई है कि इस तरह तो 21 साल की उम्र होते ही वे कहीं के नहीं रह जाएंगे। दरअसल, एच1बी वीजा वाले प्रोफेशनल्स के पत्नी और बच्चों के लिए एच4 वीजा जारी किया जाता है, लेकिन 21 साल की उम्र होने के साथ ही इसकी वैधता खत्म हो जाती है और इनके दूसरे विकल्प तलाशने पड़ते हैं। ऐसे में स्थाई निवास की बात सोचना भी बेमानी है। यही कारण है कि वहां नियमों में बदलाव की मांग जोर पकड़ रही है। कुछ अमेरिकी सांसद और तमाम अमेरिकी कंपनियां भी नियमों में बदलाव की पक्षधर हैं, क्योंकि उनकी नजर में भारतीय मेधा की भरपाई अन्यत्र से दुर्लभ है।
ट्रंप की अफलातूनी चालें और उनके नियम अपनी जगह, लेकिन एक बात तो गौर करने की है ही कि जिस भारतीय मेधा की अमेरिकी भी तारीफ करें, उसे वहां बसने की ऐसी ललक क्यों? सच है कि हमारी मेधा भी बाहर इसीलिए निकलना चाहती है कि हम उसे अनुकूल माहौल नहीं दे पा रहे। इसे बदलने की जरूरत है। इस सच से इनकार का भी कोई कारण नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद वहां नियमों की जैसी बेअंदाजी आई, उसमें ताजा हालात उस अघोषितकदम की तरह हैं, जहां वह भारतीयों पर सीधा प्रतिबंध तो नहीं लगा रहा, लेकिन चोर रास्ता तो खोल ही दिया है,जिसका प्रतिकार होना चाहिए। ऐसे हालात बनाए जाने चाहिए कि अमेरिकी ग्रीन कार्ड के प्रति यह ललक कम से कम भारतीयों के मन से तो खत्म हो ही जाए।