बच्चों को बचाने में अमेरिकी सैन्यकर्मियों और ब्रिटिश बचावकर्मियों के साथ चीन, ऑस्ट्रेलिया और जापान के एक्सपर्ट्स भी जी-जान से लगे हुए थे। गुफा से पानी निकालने के काम में मदद करने के लिए भारत से भी एक टीम वहां पहुंची हुई थी। इन सबके सम्मिलित प्रयास से यह संभव हुआ कि एक-एक करके सारे बच्चे और उनके कोच सुरक्षित बाहर आ गए। इस क्रम में थाइलैंड नेवी के एक गोताखोर समन गुनान को अपनी जान गंवानी पड़ी। मगर मृत्यु से पहले जो जज्बा उन्होंने दिखाया, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। गुफा में फंसे इन बच्चों के माता-पिता और परिवार वालों ने भी संकट की इस घड़ी में असाधारण धैर्य और गरिमा का परिचय दिया। इस दौरान सार्वजनिक रूप से एक पत्र जारी करके कोच के प्रति सम्मान जताते हुए उन्होंने कहा कि ‘हममें से कोई भी आपसे नाराज नहीं है।’ कुल मिलाकर देखें तो एक भीषण संकट को चुनौती के रूप में स्वीकार करके थाइलैंड और उसके साथ सहयोग कर रहे तमाम देशों के सरकारी-गैरसरकारी कर्मियों ने इंसानियत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
गुफा से वापसी Editorial page 13th July 2018
By: D.K Chaudhary
थाइलैंड में एक गुफा में 18 दिनों से फंसे 12 बच्चों और उनके कोच को जिस तरह सकुशल निकाल लिया गया, उसे इस दौर के कुछ सबसे रोमांचक अभियानों में गिना जाएगा। वाइल्ड बोर्स नाम की बच्चों की यह फुटबॉल टीम 23 जून को अभ्यास मैच के बाद अपने कोच के साथ वहां सेलिब्रेट करने गई थी। मगर उसी बीच जबर्दस्त मानसूनी बारिश के चलते गुफा में पानी भर गया और वे सब वहीं फंस गए।
कई किलोमीटर लंबी, उतार-चढ़ाव वाले इलाकों से बनी यह संकरी गुफा पानी भरने की वजह से बेहद खतरनाक हो गई थी। बच्चों को भोजन, पानी और रोशनी के साथ-साथ ऑक्सीजन की कमी से भी जूझना पड़ रहा था। मगर कोच के संग बच्चों ने तमाम प्रतिकूलताओं के बीच उम्मीद और मनोबल बनाए रखा। गुफा के बाहर चल रही इन बच्चों को बचाने की जद्दोजहद भी गुफा के अंदर जारी उनके संघर्ष से रत्ती भर कमतर नहीं थी। टुच्चे स्वार्थों और संकीर्ण भावनाओं के टकराव वाले इस दौर में इसी हमारी दुनिया ने संवेदनशीलता, उदारता और सामंजस्य का अद्भुत उदाहरण पेश किया।