By: D.K Chaudhary
2जी स्पेक्ट्रम मामले में आया न्यायिक फैसला हैरान करने वाला है। आमजन को यह सवाल परेशान करेगा कि आखिर सीबीआई कोर्ट में आरोप क्यों नहीं सिद्ध कर पाई? नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा था कि इस मामले में स्पेक्ट्रम आवंटन की नीति से सरकारी खजाने को 1,76,000 करोड़ रुपए का अनुमानित नुकसान हुआ। सीएजी के मुताबिक आवंटन के बजाय स्पेक्ट्रम की खुली नीलामी की जाती, तो इतनी रकम राजकोष में आती। क्षति का इस तरह अनुमान लगाना वाजिब था या नहीं, इस पर सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद से बहस चलती रही है। लेकिन यह बात आम चर्चा के दायरे में रही कि आवंटन भी ईमानदारी से नहीं किया गया। ये आम इल्जाम रहा कि कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए अनुबंध संबंधी गोपनीय सूचनाएं लीक की गईं। ‘पहले आओ, पहले पाओ की नीति के तहत अर्जी देने की समयसीमा मनमाने ढंग से तय की गई। ये बातें अनुमानित नहीं, बल्कि वास्तविक थीं। इनके बारे में सीबीआई अकाट्य साक्ष्य कैसे नहीं जुटा पाई, यह हैरतअंगेज है। स्मरणीय है कि आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट ने आवंटन की नीति खत्म कर प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी करने का आदेश दिया था। इससे सार्वजनिक संसाधनों के वितरण की नई नीति अस्तित्व में आई। बाद में स्पेक्ट्रम की नीलामियां हुईं। उनसे सरकार की तिजोरी भरी। बेशक, सीबीआई विशेष अदालत के निर्णय को उच्चतर न्यायपालिका में चुनौती देगी। पेश किए जा चुके साक्ष्यों की वहां फिर से व्याख्या करने का मौका उसे मिलेगा। लेकिन फिलहाल उसकी साख को गहरा झटका लगा है। विशेष अदालत ने उसके खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की हैं। न्यायालय ने कहा कि आरंभ में अभियोग पक्ष ने बड़ा उत्साह दिखाया। लेकिन जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ा, वह सावधान रुख अपनाने लगा, जिससे यह समझना कठिन हो गया कि अभियोग पक्ष क्या साबित करना चाहता है? केंद्र सरकार को इसकी तह में जाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए कि आखिर सीबीआई ने ऐसा क्यों किया? कांग्रेस व डीएमके (अभियुक्त ए. राजा और कनिमोझी की पार्टी) विशेष अदालत के फैसले को अपने रुख की पुष्टि बता रहे हैं। वे फिर दावा कर रहे हैं कि 2जी मामले को सियासी मकसद से हवा दी गई थी। लेकिन यह बात आम जनमानस के गले नहीं उतरेगी। बल्कि लोग इसे इसी बात की एक और मिसाल मानेंगे कि अपने देश में जांच एजेंसियां अक्सर रसूखदार लोगों तक कानून के हाथ पहुंचाने में विफल रहती हैं। इस धारणा को तोड़ने के लिए जरूरी है कि उच्चतर न्यायपालिका में केस लड़ने में सीबीआई कोई कमी न छोड़े, वरना उसकी साख और गिरेगी।